Jog likhi - 1 in Hindi Love Stories by Sunita Bishnolia books and stories PDF | जोग लिखी - 1

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जोग लिखी - 1

जोग लिखी
‘‘बाऊजी आप फिर हुक्का गुड़गुड़ाने लगे कित्ती बार कहा कि जे तोहार सेहत के लिए ठीक ना है। ’’
‘अरी लाली, तू क्यों मेरे पीछे पड़ी है, अब जे लत आज की तो है ना जो छूट जाए। अब तो हमारे साथ ही जाएगी।’
‘‘ बाऊजी हम तो कह-कह के हार गए आपको … जो जी में आये करो, पर तनिक घर को भी देख लिया करों।’’
"अब का हम चौका बर्तन करें! ’’
" चौक-बर्तन ना करो….
"तो.. का करें तू ही बता दे. ..
" ये जो दरवाजे पर गांववालन के साथ हुक्के की बैठक जमाते हो ना उससे अच्छा है कुछ तो करो..घर में कोई काम की कमी है..
‘‘अरी बिटिया घर का कोई काम हमारे भरोसे थोड़े ही है, तोहार भाई-भौजी हमको कुछ करन देवे तब ना। अब कोई काम नहीं तो तुम हो बताओ हम ईहां ना बैठें तो का करें।’’
बाउजी की बात सुनकर लाली मुँह बनाते हुए बोली - " काम नहीं…. काम नहीं अब इस घर के भी सब काम हम ही बताएं ! तनिक अपने पोते - पोतियों पर के बारे में सोच लिया करो। बताइए.. का सोचे हैं ऊका बारे में। ’’
" किसका बारे में ....?"
बाउजी ने अंजान बनते हुए कहा तो लाली को बहुत गुस्सा आया और उनके कान के पास आकर बोली-
‘‘अब इत्ते भी भोले ना बनो बाउजी। , तोहार सगुनिया की ही बात कर रहे हैं तो बताइए का सोचे हैं ऊका बारे में आप।’’
‘‘हम का सोचें, एक बार सोचे था ना ऊका बारे में, सब कुछ खराब हो गया। हमार मणि.... अऊर हमार सगुनिया की जिन्दगी मा गिरहन लगा दिए हम ।’’ कहते-कहते बाबा की बूढ़ी आँखों में आँसू छलछला उठे।
‘‘पहले जो हुआ सो हुआ बाउजी, अब छोड़ो ऊ का, आगे की सोचो। कब तक घर बिठाए रखोगे सगुनिया को।’’
‘‘लाली तोहे कित्ती बार कहा है, तू इहां पंचायती ना लगाया कर,बस तू अपन बचुआ को देख। सगुनिया को ऊ के माई-बाबू देखेंगे। ’’
हालांकि बाउजी की इस बात पर लाली को बहुत गुस्सा आया पर ये तो रोज की बात है अपने मायके में टांग अड़ाना उसकी पुरानी आदत है और हो भी क्यों ना! भई ये तो हर लड़की का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसीलिए वो थोड़ा चिढ़ते हुए बोली- ‘‘काहे कछु ना कहें हम, हम सगुनिया की बुआ ना है? ’’
‘‘अरे भाई हम से गलती हो गई तू माफ कर।’’ बाबा ने लाली के आगे हाथ जोड़कर कहा।
‘‘और हाँ बड़ी छूट दे रखी है सगुनिया को। ईके माई-बाबू तो आँख में ‘अंजन डार के बैठे हैं, पर हमार अँखियाँ खुली है।’’
बेटी की बातों से तंग होकर बाउजी झुझंलकर बोले- ‘‘काहे ऊ अभागन के पीछे पड़ी है , कोनो दस-बीस भतीजी है तोहरे। अरे! तीन भाइयों के बीच गिनती की चार लडकियाँ बचीं हैं ।’’
"आ..हा..हा.. अभागन और वो ऊंह..बुदबुदाते हुए लाली ने कहा -
" देखिए बाउजी अब हम पर दोस ना डालों हम काहे पीछे पड़ेंगे आपकी लाडली के और अभागन ! कौन अभागन वो आपकी लाड़ली। कोई अभागन ना हैं वो , सुनो तो ऊके कमरे से हँसी की कित्ती जोर की आवाज़ आवत रही।’’
क्रमशः...
सुनीता बिश्नोलिया